Friday, March 4, 2016

बेहतरीन हृदयस्पर्शी शेरो-शायरी : गली, कूचा

बेहतरीन हृदयस्पर्शी शेरो-शायरी : गली, कूचा
BEST HINDI SHAYRI COLLECTION  

मैं ख़ुद भी एहतियातन इस गली से कम गुजरता हूं,
कोई मासूम क्यों मेरे लिए बदनाम हो जाए।
-- बशीर बद्र
निकलना ख़ुल्द से आदम का सुनते आए थे लेकिन,
बड़े बे आबरु होकर तेरे कूचे से हम निकले।
-- ग़ालिब
कूचे को तेरे छोड़कर जोगी ही बन जाएं मगर,
जंगल तेरे, पर्वत तेरे, बस्ती तेरी, सहरा तेरा।
-- इब्ने इंशा
उनकी गली में जिस दम पहुंचा मेरा जनाजा,
हसरत से देखते थे पर्दा उठा उठा के
-- ज़ाकिर देहलवी
हां वो नहीं ख़ुदा परस्त जाओ वो बेवफ़ा सही,
जिसको हो दीनो-दिल अज़ीज़ उसकी गली में जाएं क्यों।
-- ग़ालिब
जब मैं चलता हूं तेरे कूचे से कतरा के कभी,
दिल मुझे फेरके कहता है उधर को चलिए
-- मीर हसन


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