होली विशेष : होली पर इन महानुभावों के रंग भरे छीटें -
HOLI SPECIAL 2014 (17 मार्च 2014) -
ऋतु फागुन की नियरानी हो,
कोई पिया से मिला दे,
खेलत फाग अंग नहीं मोरे,
सतगुरु से लिपटानी हो।
-- कबीर
कोई पिया से मिला दे,
खेलत फाग अंग नहीं मोरे,
सतगुरु से लिपटानी हो।
-- कबीर
पिउ संजोग भई जीवन वारी
भौर पुहुप संग करहिं धमारी।
होई फाग चली चांचरी जोरी,
विरह जराई दीन जस होरी।
-- जायसी
भौर पुहुप संग करहिं धमारी।
होई फाग चली चांचरी जोरी,
विरह जराई दीन जस होरी।
-- जायसी
इसी तरह ब्रज की होली में खूब
मस्ती, खूब रंगरलियां हैं।
जिधर देखो उधर मच रही
रंगरलियां तमाम ब्रज की परियों
से भर रही गलियां।
-- बिहारी
मस्ती, खूब रंगरलियां हैं।
जिधर देखो उधर मच रही
रंगरलियां तमाम ब्रज की परियों
से भर रही गलियां।
-- बिहारी
मची है रंग की कैसी बहार होली में,
हवा है जोरे चमन आशकार होली में,
अजब है हिंद की देखो बहार होली में।
-- नजीर
हवा है जोरे चमन आशकार होली में,
अजब है हिंद की देखो बहार होली में।
-- नजीर
होरी खेलत ब्रज खोरिनि में,
ब्रज-बाला बनि बनि बनवारी।
डफ की धुनि सुनि बिकल भई सब,
कोउ न रहती धर घूंघट वारी।
-- सूरदास
ब्रज-बाला बनि बनि बनवारी।
डफ की धुनि सुनि बिकल भई सब,
कोउ न रहती धर घूंघट वारी।
-- सूरदास
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