Thursday, August 6, 2015

स्वतंत्रता दिवस विशेष : शेरो शायरी - वतन, मुल्क, आजादी, गुलामी


जुबाँ हमारी न समझा यहाँ कोई मजरुह,
हम अजनबी की तरह अपने ही वतन में रहे।
-- मजरुह

मैं उसी मुल्क में जख्मों की कबा ओढ़े हूँ,
लोग जिस मुल्क में फिरते हैं नमकदान लिए।
-- स्व. रजा हैदरी

फूलों की महक लेकर कांटों की चुभन लेकर,
परदेश में निकला हूँ एहसासे वतन लेकर।
-- मोहसिन सुहैल

वतन की राह पे मरना तो सीखिए पहले,
पता चलेगा के ये मौत जिंदगी भी है।
-- सुहैल लखनवी

वतन के वास्ते ये जान क्या है,
नहीं है इश्क़ तो ईमान क्या है।
मैं हिंदुस्तान का सच्चा सिपाही,
मेरी नजरों में पाकिस्तान क्या है।
-- सुखनवर हुसैन

कफ़स से छुट के वतन का सुराग भी न मिला,
वो रंगे लाल-ओ गुल था कि बाग भी न मिला।
-- फ़िराक़ गोरखपुरी



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