Tuesday, July 15, 2014

निदा फ़ाजली : शेरो-शायरी


बेनाम सा ये दर्द क्यूं नहीं जाता,
जो बीत गया है वो गुजर क्यूं नहीं जाता।
सब कुछ तो है क्या ढूंढती रहती है निगाहें,
क्या बात है मैं वक्त पे घर क्यूं नहीं जाता।
वो एक ही चेहरा तो नहीं सारे जहां में,
जो दूर है वो दिल से उतर क्यों नहीं जाता।
                         -- निदा फ़ाजली 


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