Sunday, April 6, 2014

बशीर बद्र - गजल


Bashir Badra - Gazal

तेरा हाथ मेरे कंधे पर दरिया बहता जाता है
कितनी ख़ामोशी से दुःख का मौसम गुजर जाता है
पहले ईंट फिर दरवाजे अबके छत की बारी है
याद नगर में एक महल था, वो भी गिरता जाता है
अपना दिल है एक परिंदा जिसके बाजू टूटे हैं
हसरत से बादल को देखे, बादल उड़ता जाता है
सारी रात बरसने वाली बारिश का मैं आंचल हूं
दिन में कांटो पर फैलाकर मुझे सुखाया जाता है
हमने तो बाजार में दुनिया बेची और खरीदी है
हमको क्या मालूम किसी को कैसे चाहा जाता है।
                                                 -- बशीर बद्र

No comments:

Post a Comment